Tipu sultan Ka itihaas: टीपू सुल्तान पर 700 ब्राह्मण को वध करने का आरोप
टीपू सुल्तान 700 ब्राह्मण को मृत्यु करने का आरोप।

टीपू सुल्तान, हिंदुस्तानी इतिहास के पन्नों में दर्ज एक ऐसा नाम जिससे इंकार करना या उसको मिटा पाना हवा को तीर से काटने के बराबर है।

जीवन परिचय टीपू सुल्तान:

टीपू सुल्तान का जन्म 20 नवंबर 1750 को कर्नाटक के देवनाहल्ली में हुआ था। इनके पिता जी का नाम हैदर अली और मां का नाम फखरून्निसा था। इनके पिता मैसूर के शासक थे।
टीपू सुल्तान ने बचपन से ही शासन संचालन और युद्ध कला में माहिर हो गए थे और उनकी तारीफ़ यहीं पर ही नहीं बंद हो सकती है, उन्हें अनेक प्रकार की भाषाओं का भी ज्ञान था। वे एक विद्वान भी थे। उनकी इसी प्रतिभा से प्रभावित होकर उनके पिता जी ने उन्हें शेर-ए-मैसूर के खिताब से नवाजा था।
ब्रिटेन की नेशनल आर्मी म्यूजियम ने अंग्रेजी हुकूमत से लोहा लेने वाले 20 सबसे बड़े दुश्मनों की लिस्ट बनाई है जिसमें केवल दो भारतीय योद्धाओं को ही इसमें जगह दी गई है। जिसमे एक नाम टीपू सुलतान भी था।
नेशनल आर्मी म्यूजियम के आलेख के अनुसार टीपू सुल्तान अपनी फौज को यूरोपियन तकनीक के साथ ट्रेनिंग देने में विश्वास रखते थे। टीपू विज्ञान और गणित में गहरी रुचि रखते थे और उनके मिसाइल अंग्रेजों के मिसाइल से ज्यादा उन्नत थे, जिनकी मारक क्षमता दो किलोमीटर तक थी।
जो अंग्रेज टीपू से इतना घबराते थे उनके बनाए झूठे इतिहास को दिखाकर संघ के लोग टिपू का विरोध कर रहे हैं ।सच यह है कि विरोध कर रहे ऐसे लोग ही भारत के निष्पक्ष इतिहास के लिखने पर नंगे हो जाएँगे क्युँकि यही हर दौर में अत्याचारी रहे हैं और इसी अत्याचार को करने के लिये इन लोगों ने टीपू सुल्तान से अंग्रेजों की लड़ाई में अंग्रेज़ो का साथ दिया ।
सन् 1782 में सुल्तान हैदर अली की मृत्यु के बाद टीपू सुल्तान मैसूर के शासक बने। जिस समय टीपू सुल्तान ने शासन की बागडोर संभाली थी उस वक्त नवजात ब्रिटिश साम्राज्य भारत में अपनी स्थिति को दृढ़ करने में प्रयत्नशील था। और धीरे-धीरे हिंदुस्तान की पाक सरजमीं पर अपने गन्दे कदम मजबूत कर रहा था। टीपू सुल्तान ने इन्हीं गंदे कदमों को उखाड़ फेंकने में अपनी जान तक न्योछावर कर डाली और बदले में उन्हें क्या मिला गालियां। आज के हिन्दुस्तान में बहुत से लोग उनके बारे में काफी कुछ ग़लत अफवाहें उड़ाते हैं और उन्हें बदनाम करने की नाकाम कोशिश करते हैं।

ब्राह्मणों का विरोध टीपू सुलतान के खिलाफ:
दरअसल ब्राह्मणो की हत्याएं करने का उन पर जो इल्ज़ाम लगाया जाता है उसकी असलियत कुछ इस तरह है कि उनके शासनकाल में त्रावणकोण नाम का एक राज्य था जिसका राजा एक ब्राह्मण था जो बहुत ही अय्याश और निरंकुश था। जिसकी निरंकुशता और अत्याचार से जनता को मुक्त कराने के लिए टीपू सुल्तान ने त्रावणकोण के राजा पर आक्रमण कर दिया था जिसमें लगभग 800 ब्राह्मण सैनिक हताहत हुए थे। 
ब्राह्मण द्वारा जनता पे अत्याचार:
टीपू सुल्तान 700 ब्राह्मण को मृत्यु करने का आरोप।

अब आप सोचेंगे कि ऐसा कौन सा अन्याय हो रहा था वहां की जनता पर, तो पढ़िए कि क्या था पूरा मामला -

उस समय तत्कालीन समाज में एक अजीब सी बेहूदा परंपरा थी उस परंपरा के अनुसार वहां की नादर , नंबूदरी ब्राह्मण और क्षत्रिय नायर नामक जाति की महिलाओं को घर के अंदर ही अपना शरीर ढकने की इजाजत थी और घर बाहर जाने पर अर्धनग्न अवस्था में। और अगर कोई इस परंपरा के खिलाफ जाता था तो उसे कठोर दंड दिया जाता था। एक घटना बताई जाती है जिसमें एक निचली जाति की एक महिला अपना सीना ढंक कर पहुंच गई थी तो महल की रानी ने उसके स्तन कटवाने का आदेश दे दिया था।
इस अपमानजनक रिवाज के खिलाफ 19 वीं सदी के शुरू में आवाजें उठनी शुरू हुईं। 18 वीं सदी के अंत और 19 वीं सदी के शुरू में केरल से कई मजदूर, खासकर नादन जाति के लोग, चाय बागानों में काम करने के लिए श्रीलंका चले गए। वहां वे धर्म परिवर्तित करके ईसाई बन गए जिससे उनकी आर्थिक स्थिति मजबूत हुई औऱ यूरोपीय प्रभाव की वजह से इनमें जागरूकता उत्पन्न हुई। अब ये औरतें अपने शरीर को पूरा ढकने लगी थीं।
धर्म-परिवर्तन करके ईसाई बन जाने वाली नादर महिलाओं ने भी इस प्रगतिशील कदम को अपनाया। इस तरह महिलाएं अक्सर इस सामाजिक प्रतिबंध को अनदेखा कर सम्मानजनक जीवन पाने की कशिश करती रहीं। यह परिवर्तन तत्कालीन समाज के कुलीन मर्दों को बर्दाश्त नहीं हुआ। और अब वे उन महिलाओं पर हिंसक हमले करने लगे। जो भी इस नियम की अहेलना करती उसे सरे बाजार अपने  वस्त्र उतारने पड़ते थे। लेकिन इसके विपरित महिलाओं ने और अधिक शालीन वस्त्र पहना शुरू कर दिया। इस तरह संघर्ष लगातार बढ़ता ही गया। और बढ़ता भी क्यों नहीं क्योंकि कुलीन वर्ग को स्वयं राजा का समर्थन जो प्राप्त था।
टीपू सुलतान का अन्याय को समाप्त करने का संकल्प:
टीपू सुल्तान ने इसी अन्याय को समाप्त करने के लिए त्रावणकोर पर आक्रमण किया जिससे त्रावणकोर की सेना के बहुत से सैनिक मारे गये जिसे आज ब्राम्हणों के वध के रूप में बताकर उनका विरोध किया जा रहा है । दूसरी तरफ अन्य सामाजिक और धार्मिक गुरुओं ने भी इस घिनौनी रूढ़ि का विरोध किया जिस कारण अंततः 26 जुलाई 1859 को वहाँ के राजा ने  दलित औरतों को स्तन ढकने की अनुमति प्रदान की । और कोई भी अगर न्यायप्रिय शासक होता तो वो ऐसा घिनौना कृत अपने देश की जनता के साथ होते हुए कभी नहीं देख सकता। पूरी दुनिया जानती है कि टीपू सुल्तान ने अंग्रेजों से लोहा लेते हुए अपनी जान और अपनी सल्तनत को न्योछावर कर दिया था। 
टीपू सुल्तान 700 ब्राह्मण को मृत्यु करने का आरोप।

और संघ के लोग टीपू का विरोध इसलिए कर रहे हैं  क्योंकि भारत के निष्पक्ष इतिहास के लिखने पर वे नंगे हो जाएँगे।  क्योंकि यही वे लोग हैं जो हर दौर में अत्याचारी रहे हैं और इसी अत्याचार को करने के लिये इन लोगों ने टीपू से अंग्रेजों की लड़ाई में अंग्रेज़ो का साथ दिया । और आपको मालूम है कि टीपू सुलतान के खिलाफ लड़ाई में अंग्रेजों का साथ किसने दिया था-त्रावणकोर के सवर्ण महाराजा और मराठो ने। जो यह नहीं चाहते थे कि उनकी असलियत सबके सामने आए।
और एक युद्ध में अंग्रेजों से मुकाबला करते हुए श्रीरंगपट्टनम की रक्षा करते हुए 4 मई 1799 को टीपू सुल्तान की धोके से शहीद करा दिये गए।
बताया यह जाता है टीपू सुल्तान ने एक अंग्रेजो के विरूद्ध एक नीति बनाई थी जिसके द्वारा अंग्रेजों को मात दी जा सके रणनीति यह थी की टीपू सुल्तान ने एक बांध बनवाया जिसके द्वारा अंग्रेजी सेना को बहा दिया जा सके परंतु इस रणनीति को पूरा होने के लिए बारिश की आवश्यकता थी जोकि वर्षा होने से बांध भरता और कुछ ही पल में टूट कर आने वाली अंग्रेजी सेना को बहा देता लेकिन इसमें टीपू सुल्तान के सेनापति अंग्रेजों से मिलकर उन्हें धोखा दिया और टीपू सुलतान की किस्मत ने भी उस वक्त टीपू सुलतान का साथ न दिया जंग टीपू सुलतान द्वारा बनवाया गया हुआ बांध की रणनीति सफल तो हुई परंतु तब तलक टीपू सुल्तान जंग हार चुके थे जंग के अगले दिन भरपुर वर्षा हुई। परंतु तब तलक जंग ख़तम हो चुकी थी।
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